माननीय लटारी जी

आप  वकील है पेशे से और आपको बोगस इश्यूज का भी बहोत ज्ञान है आप इंडिगेनियस
लॉज़ को भी जानते है ....क्या आप नागपुर हाई कोर्ट में हो रहे बोगस केसेस के
सम्बन्ध में कुछ कर रहे है????

2016-03-08 8:03 GMT+05:30 चेतन Chetan <chetan...@gmail.com>:

> बहोत हि महत्व पूर्ण जानकारी दि है लतारी जी ने
>
> 2016-03-07 8:48 GMT+05:30 Latari Madavi <lkmad...@yahoo.co.in>:
>
>> बिरसा मुंडा आंदोलनके शिपाही, क्या भटक गये ?
>>               महाराष्ट्रमे नोव्हे. २०१५ से बोगस आदिवासी विरोधमे आंदोलन
>> जारी है ! स्टेट असेम्ब्ली के अधिवेशन कार्यकालमेही सिर्फ एक इश्यूपर अलग अलग
>> तीन मोर्चे निकाले गये थे ! आदिवासी के लिये बोगस आदिवासी इश्यू भावनात्मक है
>> ! सरकारी नौकरी और राजकीय आरक्षण का लाभ सविधानके प्रवाधानसे मिलना चाहिये और
>> वो आदिवासी का हक़्क़ है! लेकिन इस हक़्क़को  बोगस आदिवासी लोग गलत तरीकेसे अपने
>> झोली डालके, आदिवासीके मुहसे निवाला छिनकर पर अन्याय  रहे है ये बहोत दुखद बाब
>> है ! उसके हम मरमिटकर आंदोलन खडा करते है! और करणा भी चाहिये ! स्वतंत्रताके
>> बाद, भारतमे  आरक्षणके नामसे  आदिवासीयोके  हिस्सेमे, थोडाबहुत लाभ मिलनेकी
>> उम्मीद थी, उस पाणी फेरणेके लिये  महाराष्ट्रमे घामासाम राजकारण हो रहा है! ये
>> सोचीसमझी आरक्षण विरोधीयोकी साजिश है ! लेकिन हम पढेलिखे लोग ३५ सालोंसे आपसमे
>> लढ रहे है और राजकारणी लोग हमे लढा रहे है ! और कितने साल हम ऐसे लढते रहेंगे
>> ! क्या दुनियामे आदिवासी लोग नही है ! उनके देशमे उनको आरक्षणका प्रावधान नही
>> है !   उनका संघर्ष क्या है हमे समजनेकी जरुरत है !
>>
>> इस इश्यूकी जड कहा है ?
>>                 भारतके सविधानमे आदिवासीकी परिभाषा नही की गयी है
>> !संविधानमे अनुसूचित जमाती [जनजाती]  संकल्पनाको  क्यो लाया गया? इस बारेमे
>> आदिवासीयोमे बडी अनभिज्ञता है! मा. जयपालसिंग मुंडाजीका Constitution Assembly
>> मे जिस मुद्धोको सामने लया हमे समजनेकी जरुरत है ! उनका प्रयास था की,
>> संविधानमे आदिवासीको '' आदिवासी या मूलनिवासी '' ऐसे सज्ञा  को स्वीकृत किया
>> जाय ! लेकिन इस मामले को लेकर  Constitution Assembly मे हंगामा किया गया, और
>> आखिरतक इस मुद्धोको राजकीय दबावमे रखकर  Undefined रखा गया ! बादमे इस मसलेपर
>> निर्णय नही लेते हुये, ब्रिटीश सुप्रीम कोर्ट '' Privy Council ''मे Write
>> Petition फाइल किया गया ! इसीही  दरम्यान भरतका नया सुप्रीम कोर्ट Introduced
>> किया गया ! अंततः आदिवासीको Define करनेका मामला अभीतक अनुत्तरीत है ! इस
>> मामलेमे भारत देशका कोईभी  आदिवासी मंत्री, सांसद, विधायकव्दारा अभीतक सवाल
>> खडा नही किया गया ! क्यो ? इसका कारण येही  है की,जोभी सांसद, विधायक चुनके
>> आये वो आदिवासी नही बल्की  जनजाती नामसे
>>  [ Scheduled Tribes ] चुने गये है !
>>                   दुनियाके सभी आदिवासीको उनके देशोमे Define करके अलग
>> कानून बनाये गये है लेकिन भारतके संविधानमे आदिवासीके वांशिक गणको और
>> पारंपारिक कानूनको कोई मान्यता नही है ! जब, आदिवासीको संयुक्त राष्ट्रसंघ
>> व्दारा मूलनिवासीका दर्जा देनेकी बात आयी, तो भारत सरकारव्दारा कहा गया की,
>> भारतमे कोयीभी आदिवासी नही है ! जो भी पहले थे, वो आंतरजातीय विवाहसे जातीय
>> फ्लोमे संमलीत Caste  Assimilation हुये है! इस पर हमारे  पढेलिखे, सामाजिक
>> Movement के  तथा राजकीय लोग तब भी  खामोश थे, और आज भी है ! हमने संयुक्त
>> राष्ट्र संघमे आदिवासीकी लोकसंख्या, उनका राजवैभव, देश का आदिवासी मंत्रालय और
>> उनकी विकासकी उपयोजना, ५ और ६ वी अनुसूचीके प्रावधानकी जनकारी का सादरीकरण
>> करके  साथ साथ न्यायप्रक्रियामे प्रलंबित Atrocities Cases  के उदहरण दिये! तब
>> भी भारत सरकारका बयान आदिवासीके समर्थन मे नही था !  इस मामलेको लेकर २००७ मे
>> जब संयुक्त राष्ट्र संघने Word Bank से  फंड बंद करनेकी धमकी दी तब भारत
>> सरकारने UNO के Declaration of Rights of Indigenous People के अजेंडापर साइन
>> किया !  भारतदेशव्दारा UNO मे आदिवासीको मूलनिवासीका  दर्जा बहाल करणेके लिये
>>  तात्विकरुपसे स्वीकृत तो किया गया, लेकिन  अभीतक मूलनिवासीका दर्जा  दिया गया
>> नही !  ये भारतके आदिवासीके धोकेबाजी हो रही है !
>>                 आदिवासी को Define नही करणेके कारण बोगस आदिवासी इश्यू खडा
>> हुवा है ! इस इश्यूपर  १९८१ से आंदोलन और मोर्चे निकाले जा रहे है! इस
>> मोर्चेमे महाराष्ट्रके सत्ताधारी / विपक्ष के आदिवासी सभी मंत्री, सांसद,
>> विधायक सामील हुये, लाखो आदिवासीयोके  मोर्चेकी बडी से बडी  ताकत खडी की!
>> लेकिन पिछले ३५ सालोसे हमारा एकभी इश्यू छुडामे हम समर्थ नही हुये है!, इससे
>> शिवाय हमारे लिये, कौनसी  बडी बेशरम की बात हो सकती है ? हम पढे लिखे लोग, इस
>> इश्यूपर बहोत भाऊक है ! मोर्चेमे जादातर  ब्युरोक्य्राट और बुर्जवा लोग होते
>>  है !, ऐसे लोगोको  आंदोलन तो करना  है, लेकिन इस आंदोलनसे अपनी चमडी को भी
>> धक्का नही लगा देणा चाहते है ! ऐसे मोर्चेकी  तथा  आंदोलनकी वैचारिक धार बोथट
>> बनी हुई है ! बोगस आदिवासी इश्यू राजकीय है और येह सभी मोर्चे और आंदोलन
>>  राजकीय प्रेरित और दबावमे  बने है ! बात तो येह है की  राजकीय लोगोंको ये
>> इश्यू छुडानेका नही है ! इस इश्यूपर अपणा राजकीय अस्तित्व बकरार रखना चाहते है
>> !
>>         ऐसे  मोर्चे की  फलश्रुतीका नपुसक होती है ! इसका  हमारे
>> आंदोलनकारीको बिलकुल दुक्ख दुखः नही है ! इस इश्यूपर, अबतो  व्हाटअप पर बहोत
>> खुशियोके मना रहे है की , '' एक दुध पीनेवाले बच्छेका फोटो अपलोडकर करके लिखते
>> है की, मुझे [बच्चा] एक समय का दुध मत पिलाना, मगर बोगस आदिवासीको नही छोडना
>> '', ''जिस जगह पर मोर्चा निकाला वो जगह तो महाक्रांतीकी जगह बनी है'',
>> ''मोर्चा निकला वो दिन सुवर्ण अक्षरोसे लिखा गया है '', ''मोर्चा निकाला इस
>> वजहसे बोगस को सबक  मिला,'' इतना नही एक विधायक का कहाण है की '''इस मोर्चेसे
>> रक्तरणजीत क्रांती होणे वाली है '' इस तरह, हमारा नेतृत्व करनेवाला साथी खुदही
>> झुट्टी तस्सदिके साथ बोलता है तो,१ ये सब कुछ लिखा, ये ख्वाबो मे महल बनाने की
>> बात बनाकर अपनेही आप को धोका देनेकी बात है ! आदिवासी आंदोलन की, इससे  दुसरी
>> और कौनसी दुखःद बाब हो सकती है ? इस लिये लगने लागा है की, क्या सहीमे हम
>>  बिरसा मुंडा आंदोलनके शिपाही है ?
>>
>> हमारी ताकद कहा खर्च हो रही है ?
>>             बोगस आदिवासी इश्यू पर कोई सोलुशन निकालना है तो, पहले
>> संविधानमे हमे ''मूलनिवासी'' का दर्जा बहाल किया जाणा अनिवार्य है !  अगर
>> आदिवासी लोग संविधानमे ''मूलनिवासी''  Define होते है तो, उन्हे International
>> Law से  न्याय मिलता  है ! और आदिवासी लोग International Communities से सिधा
>> संपर्क कर सकते है ! जागतिक स्तरसे, International Forums से शासनपर दबाव ला
>> सकते है ! लेकिन फिरसे वही बात आती है की, हमारे मंत्री, विधायक, सामाजिक
>> कार्यकर्ता आदी इस मामले मे बाहोत  खामोशी धारण करते हुये दिखते है ! और   ९
>> आगस्ट को ''जागतिक मूलनिवासी'' की जगह ''जागतिक आदिवासी'' दिन मानने मे खुशिया
>> मनाते  है ! अभी अभी तो नांदेडके मोर्चामे ''मुल आदिवासी ''  इस शब्दका प्रयोग
>> किया गया ! जो की सविधनिक तथा UNO की मान्यता नाही है !  हम क्यो ऐसे शब्द
>> प्रयोग करके अपना अनपढ होनेका प्रदर्शन क्यो करते है ? जिसे वजहसे आदिवासीके
>> Definition का  लाभ उठानेके लिये मूलनिवासी शब्द प्रयोगके  कमजोरी की डौर
>> बामसेफ जैसे संघटनोके  हाथ सौपी जाती है और वो हमारे Against मे आपण लाभ उठते
>> रहते है !
>>
>> आदिवासीका हिंदूकरण, विश्व राजनीतिककी  साजीश है !..
>>              भारतके संविधानमे आदिवासीयोके  पहचान को मान्यता नही देना ये
>> भी  हिंदूकी , सोच, समजी बनी  हुई साजीश है!, जिस कारण आदिवासी लोगहिंदू शोषण
>> के शिकार बने हुये है ! आदिवासीके खिलाफ १९२५ मे नागपूरमे  हिंदूओने पहिली
>> साजीश रची गयी थी ! जिसकी रचाना १९३९ मे मा. गोलवर गुरुजीने अपनी किताब ''We
>> or Our Nationhood Define ''मे कीया  है !  आदिवासी को वनवासी बनाया जा रहा है
>> इस साजीसकाही एक भाग है ! ऐसे तो आदिवासी अपने वांशिक गण आधारीत सदियोसे  अपनी
>> अलग पहचान बनाये हुये है ! जो विश्वव्यापी है !
>>                   आरएसएसकी, हिंदूराष्ट्र की थ्रेरी हिटलरके  वांशिक
>> थ्रेरीपर आधारीत  है! जिसने ''ज्यू मूलनिवासी'' को, वांशिक, सांस्कृतिक
>> मुल्योको  तथा उनकी टेरिटोरी को नष्ट करके, आर्योने अपनी श्रेष्ठ वंशका
>> सिद्धांत रखा था , जिसका आरएसएसने  अनुकरक किया है ! हिटलर के टार्गेट ज्यू
>> आदिवासी थे उस तरह आरएसएस के भारत के आदिवासी टार्गेट है ! उनको पता है की,
>>  भारतमे आदिवासीका जब तक हिंदूकरण नही होता, तब तक  हिंदूराष्ट्र खडा नही हो
>> सकता ! इस लिये आदिवासीका हिंदू कारण ये  इश्यू को  उन्होने  ''ग्लोबल इश्यू
>> '' बनाया है ! हिंदू के देव देवता, त्योहार, और हिंदू परंपरा आदिको  आदिवासीने
>> स्वीकृत कराना चाहिये ऐसा  उनका ध्येय है ! इस बातका  विरोध करणेवाले आदिवासी
>> की  हत्या की जाती है जैसे नक्षल नामसे हत्या.
>>              पढेलिखे आदिवासी लोग इस बात को समाज नही पा रहे है ! गोंडी
>> धर्मके नामसे  पिला रंगका उपयोग करते है, आरएसएस का कहना है फ़सिस्ट  मुसोलिन
>> ने अपने फासिस्त पार्टीमे पिले रंग के स्टार अपनाये थे,! आदिवासी मोर्चे मे
>> पिले रंगके ध्वजके साथ साथ, लाल रंगके तिलक  लगाये हुये दिखेगये !
>>  आदिवासीयोके  कूछ विधायक अपने माथेपर भगवे और लाल तिलक  लगाये दिखे गये !
>> जोकी  हिटलरके नाझी स्वस्तिकके रंगके साथ जुडते है !  आदिवासीमे कोई देवदेवता
>> नही है कोई धर्म नही है, फिरभी मोर्चेमे  ''जय शिव शंभो'' बोलकर हिंदू के मरुत
>> [जिसके गले मे रुद्रकंठ की माला पहनेवाला हिंदू कि देवता ] अपनाते हुये है दिख
>> रहे है ! और ऐसा होना चाहिये ये  आरएसएस वालोंको लागता  है!  जिस आधार पर उनको
>> ये साबित करणा है की, आदिवासीने हिंदू श्रद्धाको अपनाया  है!  इससे  पेसा
>> कानुन मे  अलग परंपरिक  Customary Law  कानून बनानेकी जरुरतही  नही होगी !, और
>> आदिवासी को वनवासी बननेकेलिये आसान  तरीका बन जायेगा !
>>              बीजेपी / आरएसएस वाले चाहते है की, आदिवासी लोगोने जिंदगीभर
>> बोगस आदिवासी विषय पर मोर्चे निकालते रहना चाहिये आंदोलन करते रहना चाहिये !
>> बोगस के साथ संघर्ष करते रहना चाहिये, ताकी उनका ध्यान हटाकर आदिवासी को
>> वनवासी बनाकर  हिंदू बनानेमे  आसानी होगी और उनको  कोई विरोध नही होगा !, ताकी
>> वो लोग आदिवासी को हिंदू बनाकर हिंदूराष्ट्र की उभारणी कर सके !  आगे उनका ये
>> भी कहना है की, आप लोग राज्य संविधानको लेकर आरक्षण की मांग करते रहना चाहिये,
>> ताकी वो आपणा हिंदूराष्ट्र बनाकर,  अभी जोभी  आपके पास है वो कल  आरामसे छिन
>> सके !
>> जय रावण !
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> चेतन व. गुराडा.
> Chetan V. Gurada.
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> Assistant Professor,
> University Department of Physics (Autonomous),
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