पहाड़ों से आती प्रतिरोध की आवाज़
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जरूर पढें, "विकास और सभ्यता का संघर्ष
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बुल्लेट ट्रेन के खिलाफ़ खड़े पहाड़ के लोग

(क्यों ऐसा लगता है कि यहीं हमारी भी कहानी है..... युरोप से हजारों मील दूर 
यहां भारत के पालघर में भी.)

तुरिनो (इटली) से लगभग एक घंटे की यात्रा कर हम एक ऐसी जगह पहुँचे थे जहाँ 
किसी के भी मन में हमेशा के लिए वहीं रुक जाने का ख़्याल आएगा। आल्प्स पर्वत की 
बर्फ़ से ढंकी चोटियां दिख रही थी। ठीक उसके पहले एक ओर भूरे चट्टानों वाले 
पहाड़ सीधे खड़े थे तो दूसरी ओर गहरे हरे रंग की चादर से मुंह ढांपे ऊंचे पहाड़ 
थे। इटली और फ्रांस की सीमा पर  इन पहाड़ों के बीच दूर तक छोटे गांव बसे हैं। 
गांव का अर्थ यहाँ पिछड़ा होना कतई नहीं है। यह अपने सांस्कृतिक पहचान के लिए 
अलग होता है। उनमें अपनी भाषा, संस्कृति, अस्तित्व, इतिहास की जड़ें गहरी होती 
हैं। घाटी के क्षेत्रों में कम रफ़्तार वाली ट्रेन चलती हैं जो आगे बढ़कर फ्रांस 
की सीमा तक जाती है। घाटी में घुसते ही ठंडक बढ़ जाती है। यह एक अद्भुत घाटी 
है। इतालवी पत्रकार डेनियला बेज़ज़ी के साथ हम वाल्डीसूजा घाटी के एक गांव 
बोसेलेनो में थे।

इस पूरी घाटी के लोग लंबे समय से विकास की नई परिभाषा के ख़िलाफ़ खड़े हैं। वे 
अपनी घाटी को विकास की नई अवधरणा से बचाये रखने के लिए 30 सालों से लड़ रहे 
हैं। जब सरकार घाटी में सड़क -चौडीकरण का प्रोजेक्ट ले कर आई। घाटी के लोगों ने 
कहा वे पहले से मौजूद सड़कों से खुश हैं। मगर इस इलाके में जबरन सड़कों का 
चौड़ीकरण किया गया। लोंगो ने इसके ख़िलाफ़ लड़ते हुए अपने खेत, खलिहान, जंगल, चेरी 
के पेड़ों क़तारें और बहुत कुछ खो दिया। एक रात आचनक फौज़ ने उनपर हमला बोला और 
बच्चे, बूढ़े, स्त्रियों पर लाठियां बरसाई। उस दिन से घर के कई पालतू कुत्ते 
ग़ायब हो गए जो फिर कभी लौट कर नहीं आए। संभवतः उनकी भी हत्या हो गई हों 
क्योंकि वे इस घटना के ख़िलाफ़ लगातार भौंक रहे थे। कितने लोग इस शोक में मर गए 
कि उन्होंने घाटी के बदलने के साथ ही अपनी बहुत सी सुंदर स्मृतियां खो दी हैं। 
उन्होंने चेरी के पेड़ों के बीच गुजारी बचपन की सुनहरी यादें खो दी थी। उन सबकी 
याद में लोगों ने गीत गाए, पेंटिंग्स बनाये, नारे लिखे। जो घरों की दीवारों  
पर अंकित है आज भी। घाटी के आंदोलन से शुरुआत के दिनों से जुड़ी बुजुर्ग 
निकोलेता डॉजियो पुराने दिनों को याद करते हुए बता रही थी।

वे कहती हैं घाटी के लोग एक लड़ाई हार गए थे और विकास की बात करते हुए उस समय 
सरकार जीत गईं थी। लेक़िन कुछ सालों बाद इस घाटी से होकर 50 किलोमीटर लंबी 
बुल्लेट ट्रेन के ट्रैक की बात होने लगी। इटालियन और फ्रेंच सरकार संयुक्त रूप 
से 9 बिलियन यूरो से यह ट्रैक बनाना चाहती है। जिसके लिए पहाड़ों की ख़ुदाई होनी 
है। घाटी के लोगों को अब विकास का असली अर्थ समझ में आने लगा। वे समझ गए 
पहाडों के बिक जाने की ख़तरनाक घड़ी आ रही है। लोग फिर से जुटे और ज़ोरदार तरीके 
से आंदोलन की शुरुआत की। यह भी पता चला है इन पहाड़ों के नीचे यूरेनियम है और 
इनके ड्रीलिंग से घाटी के साथ आस-पास के इलाके भी बुरी तरह पर प्रभावित 
-प्रदूषित हो जाएंगे। यूरोप के दूसरे हिस्से के लोग घाटी के लोगों के संघर्ष 
में शामिल होने पहुँचने लगे। वे घाटी में आकर कैम्प करते और लोगों के साथ खड़े 
होते। कई लोग शहर छोड़ कर घाटी में ही हमेशा के लिए रुक गए,उनके बीच।

उस दौरान आंदोलन से जुड़े लोगों को नक्सली बता कर जेल में डाला जाने लगा। 
स्त्रियों की मज़बूत अवाज़ निकोलेता को उनके अपने घर पर ही नज़रबंद कर दिया गया। 
उनका अपने घर से बाहर निकलने पर प्रतिबंद लगा दिया गया लेक़िन उन्होंने अपनी 
स्वतंत्रता के लिए भी संघर्ष किया। यूरोप से कुछ वकीलों की टीम इन लोगों के 
साथ जुड़ी जो कानूनी लड़ाई में इनकी ओर से लड़ रही है। लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और 
यूरोप के दुसरे हिस्से के लोग इनके संघर्ष को देखने-सुनने पहुँचे।

निकोलेता डॉजियो कहती हैं क्यों उन्हें बड़े बाज़ारों के अधीन किया जा रहा। जबकि 
वे अपने क्षेत्र में जरूरत की सारी चीजें उपजा सकते हैं। वे छोटे-छोटे बाज़ार 
लगाते हैं जहाँ इस इलाके के लोग अपनी चीजें बेचते हैं। निकोलेता ने अपने कुछ 
और मित्रों के साथ ऐसे सांस्कृतिक- केंद्र बनाए जहाँ खाने-पीने के साथ 
चर्चा-परिचर्चा हो सके। जहाँ एक नए जीवन शैली की ओर लोंगों का ध्यान आकर्षित 
किया जाता है जो समानता, सम्मान, एक दूसरे के गरिमामय जीवन के  लिए साथ आने, 
प्रकृति को बचाने, अपना जीवन साझा करने पर आधारित हो। जहाँ जानवरों को भी उनकी 
स्वतंत्रता मिले, भोजन में हिस्सा और एक सुरक्षित जंगल मिले । एक ऐसे जीवन का 
प्रचार-प्रसार घाटी के लोग करते हैं।

वे सिर्फ प्रतिरोध का हिस्सा बन सिर्फ़ प्रतिक्रिया करते रहने को समाधान नहीं 
मानते। प्रतिरोध के साथ वे लोगों के बीच नई जीवन शैली का प्रचार-प्रसार करते 
हैं। इस बार उन्होंने क्रिटीकल वाइन फेस्ट का आयोजन इस सप्ताह 11 मई से 13 मई 
के बीच किया। जहां अंगूर की खेती करने वाले घाटी के लोग बेहतरीन, ऑर्गेनिक 
वाइन दुसरों के साथ साझा कर सके और नए जीवन शैली के लिए आह्वान कर सके। वे 
कहती है उनके पुरखों ने लंबे समय से घाटी के खिलाफ़ बनने वाले बुरे मंसूबों से 
संघर्ष किया है। वे ऐसे पुरखों की पीढियां हैं। वे उस इतिहास का हिस्सा हैं।

फ़्रेन्च सरकार ने इस प्रोजेक्ट को लाभदायक न बताते हुए अपनी सहमति वापस ले ली 
है। इटालियन सरकार अपनी ज़िद पर अड़ी है। लोग कहते हैं युरोपीयन रुपयों  का कुछ 
तो उपयोग करना है तो घाटी में ऐसे कार्यों में वे खुद को लगी हुई दिखाना चाहती 
है। लौटते वक्त इस पूरे आंदोलन को दिशा-दशा देने वाले बुद्धिजीवी जी.जी. 
रीकोतता से मुलाक़ात हो गई।

घाटी अभी शांत है। सिर्फ़ कभी-कभी पहाड़ो पर ड्रीलिंग की आवाज़ आती है। वे जानते 
हैं उनका संघर्ष अभी ख़त्म नहीं हुआ है। उनका संघर्ष किस तरह भारत में 
आदिवासियों के संघर्ष से, उनके जीवन और उनके यक़ीन से मेल खाता है। भारत में 
बहुत से लोग सचमुच ऐसे ही एक नए जीवन शैली की चाह रखते हैं और कैसे वे इसके 
लिए संघर्षरत हैं। यह जान कर निकोलेता डॉजियो की आँखें चमक उठी....।

जसिंता केरकेट्टा
बुसोलेनो ( इटली )

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