हिन्दी में वचन दो होते हैं-

(१) एकवचन(२) बहुवचन

शब्द के जिस रूप से एक ही वस्तु का बोध हो, उसे*एकवचन* कहते हैं। जैसे-लड़का,
गाय, सिपाही, बच्चा, कपड़ा, माता, माला, पुस्तक, स्त्री, टोपी बंदर, मोर आदि।

शब्द के जिस रूप से अनेकता का बोध हो उसे *बहुवचन*कहते हैं। जैसे-लड़के,
गायें, कपड़े, टोपियाँ, मालाएँ, माताएँ, पुस्तकें, वधुएँ, गुरुजन, रोटियाँ,
स्त्रियाँ, लताएँ, बेटे आदि।

*हिन्दी में एकवचन के स्थान पर बहुवचन का प्रयोग*

(क) आदर के लिए भी बहुवचन का प्रयोग होता है। जैसे-(1) भीष्म पितामह तो
ब्रह्मचारी थे।(2) गुरुजी आज नहीं आये।(3) शिवाजी सच्चे वीर थे।(ख) बड़प्पन
दर्शाने के लिए कुछ लोग वह के स्थान पर वे और मैं के स्थान हम का प्रयोग करते
हैं जैसे-(1) मालिक ने कर्मचारी से कहा, हम मीटिंग में जा रहे हैं।(2) आज
गुरुजी आए तो वे प्रसन्न दिखाई दे रहे थे।(ग) केश, रोम, अश्रु, प्राण, दर्शन,
लोग, दर्शक, समाचार, दाम, होश, भाग्य आदि ऐसे शब्द हैं जिनका प्रयोग बहुधा
बहुवचन में ही होता है। जैसे-(1) तुम्हारे केश बड़े सुन्दर हैं।(2) लोग कहते
हैं।

*बहुवचन के स्थान पर एकवचन का प्रयोग*

(क) तू एकवचन है जिसका बहुवचन है तुम किन्तु सभ्य लोग आजकल लोक-व्यवहार में
एकवचन के लिए तुम का ही प्रयोग करते हैं जैसे-(1) मित्र, तुम कब आए।(2) क्या
तुमने खाना खा लिया।(ख) वर्ग, वृंद, दल, गण, जाति आदि शब्द अनेकता को प्रकट
करने वाले हैं, किन्तु इनका व्यवहार एकवचन के समान होता है। जैसे-(1) सैनिक दल
शत्रु का दमन कर रहा है।(2) स्त्री जाति संघर्ष कर रही है।(ग) जातिवाचक शब्दों
का प्रयोग एकवचन में किया जा सकता है। जैसे-(1) सोना बहुमूल्य वस्तु है।(2)
मुंबई का आम स्वादिष्ट होता है।
On Jul 8, 2016 11:10 AM, "Shreenivas Naik" <
shreenivasnaik.hindi.vo...@gmail.com> wrote:

> वचन
> संज्ञा के जिस रूप से संख्या का बोध होता है उसे वचन कहते हैँ। अर्थात्
> संज्ञा के जिस रूप से यह ज्ञात हो कि वह एक के लिए प्रयुक्त हुआ है या एक से
> अधिक के लिए, वह वचन कहलाता है।
> हिन्दी मेँ वचन दो प्रकार के होते हैँ–
> 1. एकवचन – संज्ञा के जिस रूप से एक ही वस्तु का बोध हो उसे एकवचन कहते हैँ।
> जैसे – बालक, बालिका, पेन, कुर्सी, लोटा, दूधवाला, अध्यापक, गाय, बकरी,
> स्त्री, नदी, कविता आदि।
> 2. बहुवचन – संज्ञा के जिस रूप से एक से अधिक वस्तुओँ का बोध होता है उसे
> बहुवचन कहते हैँ। जैसे – घोड़े, नदियाँ, रानियाँ, डिबियाँ, वस्तुएँ, गायेँ,
> बकरियाँ, लड़के, लड़कियाँ, स्त्रियाँ, बालिकाएँ, पैसे आदि।
>
> ◊ वचन की पहचान:
> • वचन की पहचान संज्ञा अथवा सर्वनाम या विशेषण पद से ही हो सकती है। जैसे –
> एकव. – बालिका खाना खा रही है।
> बहुव. – बालिकाएँ खाना खा रही हैँ।
> एकव. – वह खेल रहा है।
> बहुव. – वे खेल रहे हैँ।
> एकव. – मेरी सहेली सुन्दर है।
> बहुव. – मेरी सहेलियाँ सुन्दर हैँ।
> • यदि वचन की पहचान संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण पद से न हो, तो क्रिया से हो
> जाती है। जैसे –
> एकव. – ऊँट बैठा है।
> बहुव. – ऊँट बैठे हैँ।
> एकव. – वह आज आ रहा है।
> बहुव. – वे आज आ रहे हैँ।
>
> ◊ वचन का विशिष्ट प्रयोग–
> • आदरार्थक संज्ञा शब्दोँ के लिए सर्वनाम भी आदर के लिए बहुवचन मेँ प्रयुक्त
> होते हैँ। जैसे –
> आज मुख्यमंत्री जी आये हैँ।
> मेरे पिताजी बाहर गए हैँ।
> कण्व ऋषि तो ब्रह्मचारी हैँ।
> • अधिकार अथवा अभिमान प्रकट करने के लिए भी आजकल ‘मैँ’ की बजाय ‘हम’ का
> प्रयोग चल पड़ा है, जो व्याकरण की दृष्टि से अशुद्ध है। जैसे –
> शांत रहिए, अन्यथा हमेँ कड़ा रुख अपनाना पड़ेगा।
> पिता के नाते हमारा भी कुछ कर्त्तव्य है।
> • ‘तुम’ सर्वनाम के बहुवचन के रूप मेँ ‘तुम सब’ का प्रचलन हो गया है। जैसे –
> रमेश ! तुम यहाँ आओ।
> अरे रमेश, सुरेश, दिनेश ! तुम सब यहाँ आओ।
> • ‘कोई’ और ‘कुछ’ के बहुवचन ‘किन्हीँ’ और ‘कुछ’ होते हैँ। ‘कोई’ और ‘किन्हीँ’
> का प्रयोग सजीव प्राणियोँ के लिए होता है तथा ‘कुछ’ का प्रयोग निर्जीव
> प्राणियोँ के लिए होता है। कीड़े–मकोड़े आदि तुच्छ, अनाम प्राणियोँ के लिए भी
> ‘कुछ’ का प्रयोग होता है।
> • ‘क्या’ का रूप सदा एक–सा रहता है। जैसे –
> क्या लिखा रहे हो ?
> क्या खाया था ?
> क्या कह रही थीँ वे सब ?
> वह क्या बोली ?
> • कुछ शब्द ऐसे हैँ जो हमेशा बहुवचन मेँ ही प्रयुक्त होते हैँ। जैसे– प्राण,
> होश, केश, रोम, बाल, लोग, हस्ताक्षर, दर्शन, आँसू, नेत्र, समाचार, दाम आदि।
> प्राण – ऐसी हालत मेँ मेरे प्राण निकल जाएँगेँ।
> होश – उसके तो होश ही उड़ गए।
> केश – तुम्हारे केश बहुत सुन्दर हैँ।
> लोग – सभी लोग जानते हैँ कि मेरा कसूर नहीँ है।
> दर्शन – मैँ हर साल सालासर वाले के दर्शन करने जाता हूँ।
> हस्ताक्षर – अपने हस्ताक्षर यहाँ करो।
> • भाववाचक संज्ञाएँ एवं धातुओँ का बोध कराने वाली जातिवाचक संज्ञाएँ एकवचन
> मेँ प्रयुक्त होती हैँ। जैसे–
> आजकल चाँदी भी सस्ती नहीँ रही।
> बचपन मेँ मैँ बहुत खेलता था।
> रमा की बोली मेँ बहुत मिठास है।
> • कुछ शब्द एकवचन मेँ ही प्रयुक्त होते हैँ, जैसे– जनता, दूध, वर्षा, पानी
> आदि।
> जनता बड़ी भोली है।
> हमेँ दो किलो दूध चाहिए।
> बाहर मूसलाधार वर्षा हो रही है।
> • कुछ शब्द ऐसे हैँ जिनके साथ समूह, दल, सेना, जाति इत्यादि प्रयुक्त होते
> हैँ, उनका प्रयोग भी एकवचन मेँ किया जाता है। जैसे– जन–समूह, मनुष्य–जाति,
> प्राणि–जगत, छात्र–दल आदि।
> • जिन एकवचन संज्ञा शब्दोँ के साथ जन, गण, वृंद, लोग इत्यादि शब्द जोड़े जाते
> हैँ तो उन शब्दोँ का प्रयोग बहुवचन मेँ होता है। जैसे –
> आज मजदूर लोग काम पर नहीँ आए।
> अध्यापकगण वहाँ बैठे हैँ।
>
> *♦* एकवचन से बहुवचन बनाने के नियम:
> • आकारान्त पुल्लिंग शब्दोँ का बहुवचन बनाने के लिए अंत मेँ ‘आ’ के स्थान पर
> ‘ए’ लगाते हैँ।
> जैसे– रास्ता – रास्ते, पंखा – पंखे, इरादा – इरादे, वादा – वादे, गधा – गधे,
> संतरा – संतरे, बच्चा – बच्चे, बेटा – बेटे, लड़का – लड़के आदि।
> अपवाद – कुछ संबंधवाचक, उपनाम वाचक और प्रतिष्ठावाचक पुल्लिँग शब्दोँ का रूप
> दोनोँ वचनोँ मेँ एक ही रहता है। जैसे–
> काका – काका
> बाबा – बाबा
> नाना – नाना
> दादा – दादा
> लाला – लाला
> सूरमा – सूरमा।
> • अकारान्त स्त्रीलिँग शब्दोँ का बहुवचन, अंत के स्वर ‘अ’ के स्थान पर ‘एं’
> करने से बनता है। जैसे– आँख – आँखेँ
> रात – रातेँ
> झील – झीलेँ
> पेन्सिल – पेन्सिलेँ
> सड़क – सड़के
> बात – बातेँ।
> • इकारांत और ईकारांत संज्ञाओँ मेँ ‘ई’ को हृस्व करके अंत्य स्वर के पश्चात्
> ‘याँ’ जोड़कर बहुवचन बनाया जाता है। जैसे–
> टोपी – टोपियाँ
> सखी – सखियाँ
> लिपि – लिपियाँ
> बकरी – बकरियाँ
> गाड़ी – गाड़ियाँ
> नीति – नीतियाँ
> नदी – नदियाँ
> निधि – निधियाँ
> जाति – जातियाँ
> लड़की – लड़कियाँ
> रानी – रानियाँ
> थाली – थालियाँ
> शक्ति – शक्तियाँ
> स्त्री – स्त्रियाँ।
> • ‘आ’ अंत वाले स्त्रीलिँग शब्दोँ के अंत मेँ ‘आ’ के साथ ‘एँ’ जोड़ने से भी
> बहुवचन बनाया जाता है। जैसे–
> कविता – कविताएँ
> माता – माताएँ
> सभा – सभाएँ
> गाथा – गाथाएँ
> बाला – बालाएँ
> सेना – सेनाएँ
> लता – लताएँ
> जटा – जटाएँ।
> • कुछ आकारांत शब्दोँ के अंत मेँ अनुनासिक लगाने से बहुवचन बनता है। जैसे–
> बिटिया – बिटियाँ
> खटिया – खटियाँ
> डिबिया – डिबियाँ
> चुहिया – चुहियाँ
> बिन्दिया – बिन्दियाँ
> कुतिया – कुतियाँ
> चिड़िया – चिड़ियाँ
> गुड़िया – गुड़ियाँ
> बुढ़िया – बुढ़ियाँ।
> • अकारांत और आकारांत पुल्लिँग व ईकारांत स्त्रीलिँग के अंत मेँ ‘ओँ’ जोड़कर
> बहुवचन बनाया जाता है। जैसे–
> बहन – बहनोँ
> बरस – बरसोँ
> राजा – राजाओँ
> साल – सालोँ
> सदी – सदियोँ
> घंटा – घंटोँ
> देवता – देवताओँ
> दुकान – दुकानोँ
> महीना – महीनोँ
> विद्वान – विद्वानोँ
> मित्र – मित्रोँ।
> • संबोधन के लिए प्रयुक्त शब्दोँ के अंत मेँ ‘योँ’ अथवा ‘ओँ’ लगाकर। जैसे–
> सज्जन! – सज्जनोँ!
> बाबू! – बाबूओँ!
> साधु! – साधुओँ!
> मुनि! – मुनियोँ!
> सिपाही! – सिपाहियोँ!
> मित्र! – मित्रोँ!
> • विभक्ति रहित संज्ञाओँ मेँ ‘अ’, ‘आ’ के स्थान पर ‘ओँ’ लगाकर। जैसे–
> गरीब – गरीबोँ
> खरबूजा – खरबूजोँ
> लता – लताओँ
> अध्यापक – अध्यापकोँ।
> • अनेक शब्दोँ के अंत मेँ विशेष शब्द जोड़कर। जैसे–
> पाठक – पाठकवर्ग
> पक्षी – पक्षीवृंद
> अध्यापक – अध्यापकगण
> प्रजा – प्रजाजन
> छात्र – छात्रवृंद
> बालक – बालकगण
> • कुछ शब्दोँ के रूप एकवचन तथा बहुवचन मेँ समान पाए जाते हैँ। जैसे–
> छाया – छाया
> याचना – याचना
> कल – कल
> घर – घर
> क्रोध – क्रोध
> पानी – पानी
> क्षमा – क्षमा
> जल – जल
> दूध – दूध
> प्रेम – प्रेम
> वर्षा – वर्षा
> जनता – जनता
> • कुछ विशेष शब्दोँ के बहुवचन –
> हाकिम – हुक्काम
> खबर – खबरात
> कायदा – कवाइद
> काश्तकार – काश्तकारान
> जौहर – जवाहिर
> अमीर – उमरा
> कागज – कागजात
> मकान – मकानात
> हक – हुकूक
> ख्याल – ख्यालात
> तारीख – तवारीख
> तरफ – अतराफ।
>
>
>
>
>
> Thanks and Regards
> Shreenivas Naik,
> M.A., M.Ed., M.Phil.
> G.P.U.College
> Vogga
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