बढती हुई जनसंख्या
जनसंख्या किसी भी राष्ट्र के लिए अमूल्य पूंजी होती है, जो वस्तुओं व सेवाओं
का उत्पादन करती है, वितरण करती है और उपभोग भी करती है । जनसंख्या देश के
आर्थिक विकास का संवर्द्धन करती है । इसीलिए जनसंख्या को किसी भी देश के साधन
और साध्य का दर्जा दिया जाता है । लेकिन अति किसी भी चीज की अ
भ्रष्टाचार
आज के आधुनिक युग में व्यक्ति का जीवन अपने स्वार्थ तक सीमित होकर रह गया है ।
प्रत्येक कार्य के पीछे स्वार्थ प्रमुख हो गया है । समाज में अनैतिकता,
अराजकता और स्वार्थ से युता भावनाओं का बोलबाला हो गया है । परिणाम रचरुप
भारतीय संस्कृति और उसका पवित्र तथा नैतिक स्वरुप धुँधला-सा हो गया है । इ
कंप्यूटर
कंप्यूटर एक अद्भुत मशीन है । इसके आविष्कार से दुनिया मे क्रांति आ गई । जटिल
से जटिल गणना का कार्य सरल हो गया । फाइलों का हिसाब-किताब कंप्यूटर पर होने
लगा । बैंकों और कार्यालयों का काम-काज सहज हो गया । वे काम मिनटों में होने
लगे जिनमें घंटों और दिनों लग जाते थे । कंप्यूटर रूपी घोड़े पर सवार
इंटरनेट की उपयोगिता
आज का युग विज्ञान का युग है । वैज्ञानिक उपलब्धियों ने मनुष्य के जीवन को एक
नई दिशा प्रदान की है । विज्ञान के प्रयोग से अनेक असंभव लगने वाली बातों को
उसने संभव कर दिखाया है ।
जिस चंद्रमा को हम देवता का स्वरूप मानते थे उसी चंद्रमा पर अपनी विजय पताका
फहराकर उसने अनेक भ्रांतियों क
नारी का सम्मान
नारी का सम्मान सदा होना चाहिए। संस्कृत में एक श्लोक है- 'यस्य पूज्यंते
नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता: (भावार्थ- जहां नारी की पूजा होती है, वहां
देवता निवास करते हैं।) किंतु आज हम देखते हैं कि नारी का हर जगह अपमान होता
चला जा रहा है। उसे 'भोग की वस्तु' समझकर आदमी 'अपने तरीके' से 'इस्तेम
समाचार पत्र
आज के युग में समाचार पत्र मनुष्यन की दिनचर्या का आवश्यतक अंग बन गया है।
प्रात:काल से ही मनुष्यय को इसका इंतजार रहता है। समाज की उन्नुति में इसका
अहम योगदान रहा है।
हमारे आसपास व देश-विदेश की घटनाओं की जानकारी समाचार पत्र से ही प्राप्तद
होती है। समाचार पत्र का प्रकाशन कलकत्ता से प्रारं
स्कूल की पुस्तकालय
ज्ञान-विज्ञान की असीम प्रगति के साथ पुस्तकालयों की सामाजिक उपयोगिता और अधिक
बढ़ गयी हैI युग-युग कि साधना से मनुष्य ने जो ज्ञान अर्जित किया है वह
पुस्तकों में संकलित होकर पुस्तकालयों में सुरक्षित है|
वे जनसाधारण के लिए सुलभ होती हैंI पुस्तकालयों में अच्छे स्तर कि पुस्तकें
रखी जाती
आपका mail बहुत उपयोगी थ। धन्यवाद
On 01-Feb-2016 6:02 PM, "rathodrajkumar100"
wrote:
> अव्यय ( अविकारी शब्द )
>
> अविकारी शब्द का अर्थ : -
> जिन शब्दों जैसे क्रियाविशेषण ,
> संबंधबोधक ,समुच्चयबोधक , तथा विस्मयादिबोधक आदि के स्वरूप में किसी भी कारण
> से परिवर्तन नहीं होता, उन्हें अविकारी शब्द कहते
हिंदी वाक्य
हिंदी वाक्य का अर्थ :-
वक्ता के कथन को पूर्णत: व्यक्त करने वाले सार्थक शब्द समूह को वाक्य कहते हैं।
वाक्य में पूर्णता तभी आती है जब पद सुनिश्चित क्रम में हों और इन पदों में
पारस्परिक अन्वय (समन्वय ) विद्यमान हो। वाक्य की शुद्धता भी पदक्रम एवं अन्वय
से सम्बंधित है।
वाक्य के भेद:-
I.
अव्यय ( अविकारी शब्द )
अविकारी शब्द का अर्थ : -
जिन शब्दों जैसे क्रियाविशेषण ,
संबंधबोधक ,समुच्चयबोधक , तथा विस्मयादिबोधक आदि के स्वरूप में किसी भी कारण
से परिवर्तन नहीं होता, उन्हें अविकारी शब्द कहते हैं। अविकारी शब्दों को
अव्यय भी कहा जाता है।
अव्यय - अव्यय वे शब्द हैं -
जिनमें लिंग ,पुरुष ,काल
अव्यय ( अविकारी शब्द )
अविकारी शब्द का अर्थ : -
जिन शब्दों जैसे क्रियाविशेषण ,
संबंधबोधक ,समुच्चयबोधक , तथा विस्मयादिबोधक आदि के स्वरूप में किसी भी कारण
से परिवर्तन नहीं होता, उन्हें अविकारी शब्द कहते हैं। अविकारी शब्दों को
अव्यय भी कहा जाता है।
अव्यय - अव्यय वे शब्द हैं -
जिनमें लिंग ,पुरुष ,काल
Sir nice
On 30 Jan 2016 12:35 pm, "Gurumurthy K" wrote:
> वैष्णव जन तो तेने कहिये जे पीड परायी जाणे रे।
> पर दुःखे उपकार करे तो ये मन अभिमान न आणे रे॥
> सकळ लोकमां सहुने वंदे, निंदा न करे केनी रे।
> वाच काछ मन निश्चळ राखे, धन धन जननी तेनी रे॥
> समदृष्टि ने तृष्णा त्यागी, परस्त्री जेने मात रे।
> ज
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