महाकाव्य और खण्ड काव्य में अंतर

काव्य के तीन मुख्य भेद प्रचलित हैं : महाकाव्य, खण्ड-काव्य और मुक्तक काव्य ।
महाकाव्य और खण्ड काव्य में कथा का होना अनिवार्य है; इसलिए इन दोनों को
प्रबंध काव्य कहा जाता है । प्रबंध काव्य के दोनों रुपों में घटना और चरित्र
का महत्व होता है । घटनाओं और चरित्रों के संबंध में भावों की योजना प्रबंध
काव्य में अनिवार्य है । महाकाव्य में मुख्य चरित्र के जीवन को समग्रता में
धारण करने के कारण विविधता और विस्तार होता है ।

खण्ड काव्य में मुख्य चरित्र की किसी एक प्रमुख विशेषता का चित्रण होने के
कारण अधिक विविधता और विस्तार नहीं होता ।

मुक्तक काव्य में कथा-सूत्र आवश्यक नहीं है । इसलिए उसमें घटना और चरित्र के
अनिवार्य प्रसंग में भाव-योजना नहीं होती । वह किसी भाव-विशेष को आधार बना कर
की गई स्वतंत्र रचना है ।

काव्य-शास्त्र में महाकाव्य और खण्ड-काव्य के लक्षण गिना दिए गए हैं । जो
निम्नानुसार हैं :

महाकाव्य सर्गों में बँधा होता है । सर्ग आठ से अधिक होते हैं । वे न बहुत
छोटे न बहुत बड़े होते हैं । हर सर्ग में एक ही छंद होता है । किंतु सर्ग का
अंतिम पद्य भिन्न छंद का होता है । सर्ग के अंत में अगली कथा की सूचना होनी
चाहिए । देवता या उच्च कुल का क्षत्रिय इसका नायक होता है । श्रृंगार, वीर और
शांत रस में से कोई एक रस अंगी होता है और अन्य रस गौण होते हैं । नाटक की सभी
संधियाँ रहती हैं । कथा ऐतिहासिक या लोक प्रसिद्ध होती है । धर्म,अर्थ, काम
मोक्ष में से कोई एक उसका फल होता है । खलों और सज्जनों का गुण-वर्णन भी होता
है । इसमें संध्या, सूर्य,चंद्रमा,रात्रि, दिन ,मृगया ,पर्वत,ऋतु, वन, समुद्र,
संयोग,वियोग,स्वर्ग, नरक,नगर, यज्ञ,संग्राम,यात्रा,विचाह आदि का सांगोपांग
वर्णन होता है ।

खण्ड काव्य के विषय में कहा गया है कि वह एक देशानुसारी होता है । यहाँ देश का
अर्थ भाग या अंश है । खण्डकाव्य में भी सर्ग होते हैं । हर सर्ग में छंद का
बंधन इसमें भी होता है । लेकिन छंद परिवर्तन जरूरी नहीं है । प्रकृति वर्णन
आदि हो सकता है लेकिन वह भी आवश्यक नहीं है ।

महा-काव्य और खण्ड-काव्य के जो लक्षण बताए गए हैं, उनमें एक शर्त का पालन
जरुरी है और वह शर्त है उक्त सभी तत्वों का अविच्छिन्न या सुसंगत संबंध में
होना । इसी का नाम प्रबंध है ।

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