संत कनकदास का जन्म एतहासिक कुरुबा (गडरिया) समुदाय में सन 1486  में कर्नाटक
राज्य के धारवाड़ जिले के बाकापुर नगर के समीप वाडा नामक गाव में हुआ था | इनके
पिता का नाम वीरेगोडा तथा माता का नाम बच्चामा था |इनके पिता के पास विजयनगर
साम्राज्य में 78  गावो की जमीदारी थी |संत कनकदास के बचपन का नाम तिमप्पा था
ये बचपन से ही धार्मिक प्रवती के थे इन्हें भजन गाने, प्रवचन सुनने का विशेष
शोक था |जब वे 13 वर्ष के थे तो इनके पिता का स्वर्गवास हो गया इनकी पैतृक
जमीदारी छीन गयी फलत: ये गाव-गाव घूम कर भक्तिपरक गीत गाने , धार्मिक पोराणिक
चरित्र का अभिनय करने में अपना जीवन व्यतीत करने लगे |  धीरे-धीरे इन्हें बहुत
बड़े भक्त , कवी , संगीतज्ञ एव कवि के रूप में ख्यति प्राप्त हो गयी | इन सबके
बावजूद ये दैनिक जीवन में भेड़-बकरी चराया करते थे |अचानक एक दिन खेत में
उन्हें खुदाई में कुछ स्वर्ण पात्र मिले जिससे उन्होंने धार्मिक क्रियाकलापो
पर जैसे मंदिरों में धन लगाना , निर्धनों में भोजन बाटना धार्मिक आयोजनों में
बड़े उत्साह से खर्च किया | उनकी पचन बहुत बड़े दानी के रूप में होने लगी |लोग
उन्हें तिमप्पा के बजाय “कानाकप्पा “ या “कनकराज” के नाम से पहचानने लगे |

    एक ख्यति प्राप्त कवि एव भक्त के रूप में जब इनकी खयाति विजयनगर के सम्राट
कृष्ण देव राय तक पहुची तो सम्राट ने इन्हें अपने पास बुलवाया , कई गाव का
प्रशासक बनाया तथा  इनका नाम कनाकप्पा से बदलकर कनक नायक हो गया | कनाक्दास ने
कवि के रूप में कई रचनाए की उनकी प्रसिद्ध कविता “कुला कुला कुला “ बड़ी चर्चित
हुई जिसे उन्होंने जातीय भेदभाव से पीडित होने पर लिखा था जिसका संशिप्त
भावार्थ था कि एक ही तरह से पैदा होने वाले , वही खाना , वही पानी पीने वाले
है तो एक उच्च और दूसरा निम्न या नीचे क्यों है? इसके अतरिक्त इन्होने “नल
चरित्र “ ( रजा नल की कहानी ), “ हरिभाक्तिसार “ (जिसमे भगवन कृष्ण / विष्णु
की शक्ति रचनाये है ), की रचना की | रजा कृष्ण देव राय के यहाँ रहते हुए रजा
के बारे में “मोहन तरंगनी “ ग्रन्थ लिखा | भगवन नरसिंह की भक्ति में “नरसिंह
स्तव “ लिखा |इसी प्रकार इनकी एक और प्रशिद रचना है “राम धयान चरित्र “ नाम से
है जिसमे इन्होने ऊँची और नीची जातियों के बारे में प्रतीकात्मक रूप से लिखा
है | इस रचना की कथा में रागी और चावल की लड़ाई के लड़ाई हो जाती है | दोनों
अपने को एक दुसरे से स्रेस्थ बताते है | दोनों फैसला करने भगवान् राम के पास
जाते है | राम दोनों को 6 माह जेल /कैद की सजा देते है जहा अंत: चावल सड जाता
है और रागी बाख जाता है यहाँ चावल को उच्च तथा रागी को निम्न वर्ग के
प्रतिनिधित्व में दिखाया गया है |

  कालांतर में पारिवारिक जीवन में आये अनेक दुखो से टूट कर कनकनायक भक्ति
मार्ग पर मुड गए | स्वपन में भगवन तिरुमलेश ने इन्हें कुछ सन्देश दिए | धयान न
देने पर भगवन ने जीवन की कुछ घटने बताते हुए इन्हें प्रभु सेवा करने को कहा |
कनक नायक ने हाथ जोड़ कर कहा प्रभु में अब आपका दास बनूँगा इसी घटना के उपरांत
इन्होने अपना नाम कनक नायक से बदल कर “ कनकदास “ कर लिया , राजसी वस्त्र त्याग
दिए , सामान्य वेशभूषा अपना ली जिसने घुटनों तक धोती , कंधे पर कम्बल , दाये
हाथ में एक तारा तथा बाये हाथ में खडताल धारण किया | इसके उपरांत वे भक्ति भाव
से भ्रमण करने लगे जगह जगह मंदिरों में जाना, भजन गाना उनका कार्य था | कनकदास
ने बागिनेले में भगवन आदि केशव के मंदिर का निर्माण कराया | एक बार वे एक मठ
में प्रवेश कर रहे थे तो उनकी जाति पूछी गयी जिसका उन्होंने अध्यात्मिक उत्तर
दिया | जब मठ वालो को समझ नहीं आया तो उन्होंने भजन गया जिसमे कहा हम गड़ेरिया
है वीरप्पा हमारे भगवन है जो मानव की भेड़ की रक्षा करते है | मठधिश उनकी भक्ति
और सेवाभाव से बहुत प्रभावित हुए और आगे से उन्होंने मठ में जातीय भेदभाव न
करने की बात कही |

   एक बार कनकदास ने उदुप्पी में कृष्ण मंदिर में भगवान् कृष्ण के दर्शन करने
चाहे लेकिन यहाँ भी ब्राहमणों ने जाति दुवेष के कारण उन्हें मंदिर में नहीं
घुसने दिया | वे कई दिन तक भूखे प्यासे मंदिर के बहार पड़े रहे | मान्यता है की
भगवन कृष्ण को उन पर दया आई और वे उनके पास ग्वाले के रूप में आये और एक
स्वर्ण आभूषण देकर कहा कि इसे बेच कर अपनी भूख मिटाओ | कनकदास ने ऐसा ही किया
| प्रात: मंदिर खुलने पर भगवन कृष्ण की मूर्ति से वही आभूषण गायब मिला |
खोजबीन हुए तो कनकदास ने सारी बात सच सच बता दी | तब व्यवस्थापको ने दुकान से
आभूषण लेकर पुन: मंदिर में यथास्थान स्थापित किया | इसी प्रकार उदुप्पी में ही
कृष्ण मंदिर में महापूजा का आयोजन हुआ इन्हें कृष्ण के दर्शन की तीव्र इच्छा
थी लेकिन जातीय विदूवेशवंश इन्हें मंदिर में प्रवेश नहीं दिया गया | निराश
होकर ये मंदिर के पिछवाड़े चले गए और दुखी होकर कृष्ण का भजन गाने लगे | अचानक
चमत्कार हुआ , मंदिर के पिछवाड़े की दिवार टूटकर उसमे एक छेद हो गया जहा से
भगवन कृष्ण ने कनकदास को साक्षात् दर्शन दिए | कनकदास भगवन कृष्ण के अप्रितम
सोंदर्य को निहारे जा रहे थे , उधर मंदिर का पुजारी जो पूजा कर रहा था देखता
है कि भगवन उसकी ओर पीठ करके खड़े है | जब इसके कारन का पता लगाया गया तो सभी
ने कनकदास की भक्तिभाव को प्रणाम किया | इन चमत्कारिक घटनाओ के कारण कनकदास को
अपार लोकप्रियता तथा संत सिरोमणि का दर्जा मिला | तब से लेकर आज तक उदुप्पी के
कृष्ण मंदिर में प्रष्ठ भाग की दिवार में बनी खिडकी  जो आज भी विधमान है “कनक
खिडकी” के नाम से प्रसिद्ध है | लोग इस चमत्कारिक घटना के साक्ष्य के रूप में
इस खिडकी एव कृष्ण भगवन का दर्शन करने जाते है |ऐसे थे हमारे महँ संत कनकदास
जी |

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