*नेहरु की विरासत की अवहेलना*
*, भारतीय प्रजातंत्र को कमज़ोर करेगी*

*-राम पुनियानी *

पिछले कुछ वर्षों से, सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा भारत के
प्रथम प्रधानमंत्री और आधुनिक भारत के निर्माता जवाहरलाल नेहरु की विरासत को
नज़रंदाज़ और कमज़ोर करने के अनवरत और सघन प्रयास किये जा रहे हैं।  अंतर्राष्ट्रीय
आयोजनों में उनका नाम लेने से बचा जा रहा है और कई स्कूली पाठ्यपुस्तकों में
से उन पर केन्द्रित अध्याय हटा दिए गए हैं। राष्ट्रीय अभिलेखागार की भारत छोड़ो
आंदोलन पर केन्द्रित प्रदर्शनी में उनका नाम तक नहीं है। सत्ताधारी दल के
प्रवक्ता, वर्तमान सरकार की असफलताओं के लिए नेहरू की नीतियों को दोषी ठहरा
रहे हैं। सोशल मीडिया में उनके बारे में निहायत घटिया बातें कही जा रही हैं।
यह बताया जा रहा है कि वे और उनके पुरखे अत्यंत विलासितापूर्ण जीवन जीते थे।
ऐतिहासिक घटनाओं को तोड़-मरोड़कर, विभाजन और कश्मीर समस्या के लिए नेहरू को दोषी
ठहराया जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने तो यहां तक कह दिया कि नेहरू ने सरदार
पटेल के अंतिम संस्कार में हिस्सा नहीं लिया था।

आईए, हम उद्योग, तकनीकी, कृषि, शिक्षा और विज्ञान के क्षेत्रों में नेहरू के
योगदान पर नजर डालें और यह देखें कि आधुनिक भारत के निर्माण में उनका क्या
योगदान था। नेहरू, अंतर्राष्ट्रीय मामलों से बहुत अच्छी तरह से वाकिफ थे। वे
पूरी दुनिया में साम्राज्यवाद के विरूद्ध चल रहे संघर्षों के समर्थक थे और
नस्लवाद के कड़े विरोधी थे। वे सभी देशों की समानता के पक्षधर थे। जहां तक भारत
का प्रश्न है, गांधीजी के जादू से प्रभावित होकर वे स्वाधीनता संग्राम में कूद
पड़े। कांग्रेस के अध्यक्ष बतौर उन्होंने भारत को पूर्ण स्वतंत्रता दिए जाने की
मांग की। वे केवल खादी पहनते थे। स्वाधीनता संग्राम के दौरान उन्हें कई बार
जेल जाना पड़ा और वे कुल मिलाकर 3,269 दिन जेल में रहे। वे एक जिज्ञासु पाठक और
प्रतिभाशाली लेखक थे। उनकी आत्मकथा व उनके द्वारा लिखित ‘भारत एक खोज‘ और ‘पिता
के पत्र, पुत्री के नाम‘ अंतर्राष्ट्रीय साहित्य की अनमोल विरासत हैं। विभाजन
का मुद्दा काफी उलझा हुआ था। अंग्रेज, इस देश को दो टुकड़ों में बांटने पर
आमादा थे। वे ऐसा इसलिए कर सके क्योंकि सावरकर ने काफी पहले द्विराष्ट्र के
सिद्धांत का प्रतिपादन कर दिया था और जिन्ना, अलग इस्लामिक देश की अपनी मांग
पर अड़े हुए थे। कांग्रेस के शीर्ष नेताओं में से पटेल वे पहले व्यक्ति थे
जिन्हें यह अहसास हो गया था कि देश का विभाजन अपरिहार्य है। नेहरू को इस कड़वे
सच को स्वीकार करने में कई और महीने लग गए। कश्मीर के मामले में पटेल ने
जूनागढ़ में भाषण देते हुए कहा कि अगर पाकिस्तान हैदराबाद पर अपना दावा छोड़ दे
तो भारत, कश्मीर को उसका हिस्सा बनने देगा। शेख अब्दुल्ला के जोर देने पर
नेहरू ने कश्मीर के महाराजा के साथ विलय की संधि पर हस्ताक्षर करवाकर, भारतीय
सेना को पाकिस्तानी कबाईलियों से मुकाबला करने कश्मीर भेजा।

जहां तक प्रधानमंत्री पद का सवाल है, गांधीजी को देश ने यह अधिकार दिया था कि
वे भारत के पहले प्रधानमंत्री को चुनें। गांधीजी को यह अहसास था कि नेहरू को
वैश्विक मामलों की बेहतर समझ है और राजनैतिक दृष्टि से वे पटेल की तुलना में
उनके अधिक योग्य उत्तराधिकारी सिद्ध होंगे। जहां तक लोकप्रियता का सवाल है,
नेहरू, पटेल से कहीं आगे थे। एक बार एक आम सभा में उमड़ी भारी भीड़ के बारे में
पत्रकारों द्वारा पूछे जाने पर पटेल ने कहा कि लोग जवाहर को देखने आए हैं, उन्हें
नहीं।

आज सार्वजनिक क्षेत्र को बढ़ावा देने की नेहरू की नीति की आलोचना की जा रही है।
यह नीति नेहरू ने अकारण और केवल अपनी इच्छा से नहीं अपनाई थी। बांबे प्लान (1944)
के तहत उद्योगपति, सरकार से आधारभूत उद्योगों की स्थापना के लिए सहायता की
अपेक्षा कर रहे थे। सार्वजनिक क्षेत्र में स्थापित आधारभूत उद्योगों ने देश की
औद्योगिक प्रगति की राह खोली। नोबेल पुरस्कार विजेता पाल कुर्गबेन ने कहा था
कि भारत ने तीस साल में जो हासिल किया है, उसे हासिल करने में इंग्लैंड को 150
साल लग गए थे। यह इसलिए हो सका क्योंकि गणतंत्र के शुरुआती वर्षों में नेहरू
ने देश को एक मजबूत नींव दी।

शिक्षा और विज्ञान के क्षेत्रों में उनकी नीतियों के कारण ही आज हम दुनिया के
अन्य देशों से प्रतिस्पर्धा कर पा रहे हैं और भारत एक बड़ी और मजबूत
अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा है। औद्योगीकरण के साथ-साथ, नेहरू ने शिक्षा और
विज्ञान पर भी बहुत जोर दिया। आज अगर हम अपनी तुलना उन देशों से करें, जो
हमारे साथ ही स्वतंत्र हुए थे, तो हमें पता चलेगा कि विज्ञान और तकनीकी के
मामले में हम उनसे कहीं आगे हैं। नेहरू और अंबेडकर ने यह सुनिश्चित  किया कि
राज्य के नीति निदेशक तत्वों के अधीन नागरिकों में वैज्ञानिक समझ का विकास
करने की जिम्मेदारी राज्य को सौंपी जाए। नेहरू ने नीति निदेशक तत्वों के इस
हिस्से को मूर्त स्वरूप देते हुए आईआईटी, इसरो, भाभा परमाणु अनुसंधान
केन्द्र, सीएसआईआर
इत्यादि जैसी संस्थाओं की नींव रखी। स्वास्थ्य के क्षेत्र में अखिल भारतीय
आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) जैसी उत्कृष्ट संस्थाओं की स्थापना की गई।

जब हम स्वाधीन हुए, उस समय देश की साक्षरता दर 14 प्रतिशत और औसत आयु 39 वर्ष
थी। आज हम मीलों आगे निकल आए हैं, यद्यपि हमें और आगे जाना है।

सामाजिक स्तर पर नेहरू बहुवाद के हामी थे और धर्मनिरपेक्षता को राज्य की मूल
नीतियों का हिस्सा मानते थे।  अपनी इसी प्रतिबद्धता के चलते, विभाजन के बाद
हुए कई दंगों में वे हिंसा पर नियंत्रण करने के लिए खुली जीप पर सवार हो खून
की प्यासी भीड़ों के बीच गए। सन् 1961 के जबलपुर दंगों के बाद, उन्होंने
राष्ट्रीय एकता परिषद का गठन किया। आज के शासकों के विपरीत, वे धार्मिक
अल्पसंख्यकों का विश्वास जीत सके। उनके द्वारा स्थापित संस्थाओं जैसे योजना
आयोग और राष्ट्रीय एकता परिषद को कमजोर या समाप्त किया जा रहा है। आज देश में
आर्थिक असमानता तेजी से बढ़ रही है और कारपोरेट घरानों को लूट की पूरी छूट मिली
हुई है।

क्या उनमें कोई कमियां नहीं थीं? क्या उन्होंने कोई गलती नहीं की? ऐसा बिल्कुल
भी नहीं है। उनके हिस्से में असफलताएं और गलतियां भी थीं। उन्होने चीन पर अगाध
विश्वास किया और भारत-चीन युद्ध में हम पराजित हुए। बड़े बांधों के संबंध में
उनकी नीति में भी कमियां थीं। परंतु कुल मिलाकर उन्होंने न केवल भारत, बल्कि
पूरी दुनिया पर अपनी गहरी और सकारात्मक छाप छोड़ी है।
क्षुद्र सोच से ग्रस्त आज के शासक, नेहरू के योगदान को नजरअंदाज करना चाहते
हैं। वे उसे कम कर बताने की कोशिश कर रहे हैं। नेहरू द्वारा स्थापित दो
महत्वपूर्ण संस्थाओं योजना आयोग और राष्ट्रीय एकता परिषद को भंग कर दिया गया
है। नेहरू आज विघटनकारी और संकीर्ण विचारधारा के निशाने पर हैं। उनके बारे में
अगणित झूठ फैलाए जा रहे हैं। सबसे घृणास्पद यह है कि सुनियोजित तरीके से उनके
व्यक्तिगत चरित्र, उनके परिवार और उनके योगदान को बदनाम किया जा रहा है। आज जो
लोग सरकार में हैं, उनके विचारधारात्मक पूर्वजों ने कभी स्वाधीनता संग्राम में
हिस्सा नहीं लिया। उनके पास अपना कहने को कोई नायक है ही नहीं। यही कारण है कि
वे सरदार पटेल जैसे कांग्रेस नेताओं पर कब्जा जमाने की कोशिश कर रहे हैं।
विचारधारा के स्तर पर वे नेहरू को अपनी राह में बड़ा रोड़ा पाते हैं। अगर नेहरू
की विचारधारा इस देश में जिंदा रहेगी तो वे अपने संकीर्ण लक्ष्यों को कभी
हासिल न कर सकेंगे। यही कारण है कि वे नेहरू पर कीचड़ उछाल रहे हैं। *(अंग्रेजी
से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया) *

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